सोमवार, 17 मई 2010
यह कैसी गांधीगिरी
यह कैसी गांधीगिरी
कुछ दिन पहले सुबह - सुबह वरिष्ठ गाँधीवादी लेखक डॉ श्रीभगवान सिंह का फ़ोन आया की जनसत्ता वाले इन दिनों हमलोगों को दुनिया मेरे आगे में नहीं छाप रहे हैं। केवल नए लोगों को छाप रहे हैं जबकि नए लोगो को लिखना क्या आता है ? मैंने पूछा 'नए लोग लिख रहे है तो आपको क्या दिक्कत आप क्या चाहते हैं कि नए लोग नहीं छपे ।'
वे गुस्सा कर बोले - तो आप भी ऐसे लोगों को समर्थन देते हैं । जिनको लिखने कि तमीज़ तक नहीं है ।
मैं अवाक था । सोचने लगा कि गाँधी भी क्या ऐसा सोचते होंगे ? सिर्फ गांधीगिरी का प्रवचन देकर किताब लिखकर गाँधी कि बात करना उचित है ?
मैंने उस वक़्त चुप रहना
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accha laga.
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